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अपे॒तो य॑न्तु प॒णयोऽसु॑म्ना देवपी॒यवः॑। अ॒स्य लो॒कः सु॒ताव॑तः। द्युभि॒रहो॑भिर॒क्तुभि॒र्व्य᳖क्तं य॒मो द॑दात्वव॒सान॑मस्मै ॥१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑। इ॒तः। य॒न्तु॒। प॒णयः॑। असु॑म्ना। दे॒व॒पी॒यव॒ इति॑ दे॑वऽपी॒यवः॑। अ॒स्य। लो॒कः। सु॒ताव॑तः। सु॒तव॑त॒ इति॑ सु॒तऽव॑तः ॥ द्युभि॒रिति॒ द्युभिः॑। अहो॑भि॒रित्यहः॑ऽभिः। अ॒क्तुभि॒रित्य॒क्तुऽभिः॑। व्य᳖क्त॒मिति॒ विऽअ॑क्तम्। य॒मः। द॒दा॒तु॒। अ॒व॒सान॒मित्य॑व॒ऽसान॑म्। अ॒स्मै॒ ॥१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब व्यवहार और जीव की गति विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (देवपीयवः) विद्वानों के द्वेषी (पणयः) व्यवहारी लोग दूसरों के लिये (असुम्नाः) दुःखों को देते हैं, वे (इतः) यहाँ से (अप, यन्तु) दूर जावें (लोकः) देखने योग्य (यमः) सबका नियन्ता परमात्मा (द्युभिः) प्रकाशमान (अहोभिः) दिन (अक्तुभिः) और रात्रियों के साथ (अस्य) इस (सुतावतः) वेद वा विद्वानों से प्रेरित प्रशस्त कर्मोंवाले जनों के सम्बन्धी (अस्मै) इस मनुष्य के लिये (व्यक्तम्) प्रसिद्ध (अवसानम्) अवकाश को (ददातु) देवे ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - जो लोग आप्त सत्यवादी धर्मात्मा विद्वानों से द्वेष करते, वे शीघ्र ही दुःख को प्राप्त होते हैं। जो जीव शरीर छोड़ के जाते हैं, उनके लिये यथायोग्य अवकाश देकर उनके कर्मानुसार परमेश्वर सुख-दुःख फल देता है ॥१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ व्यवहारजीवयोर्गतिमाह ॥

अन्वय:

(अप) दूरीकरणे (इतः) अस्मात् (यन्तु) गच्छतु (पणयः) व्यवहारिणः (असुम्नाः) असुखानि दुःखानि। सुम्नमिति सुखनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.६) (देवपीयवः) ये देवानां द्वेष्टारः (अस्य) (लोकः) दर्शनीयः (सुतावतः) प्रशस्तानि सुतानि वेदविद्वत्प्रेरितानि कर्माणि यस्य तस्य (द्युभिः) प्रकाशमानैः (अहोभिः) दिनैः (अक्तुभिः) रात्रिभिः (व्यक्तम्) प्रसिद्धम् (यमः) यन्ता (ददातु) (अवसानम्) अवकाशम् (अस्मै) ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये देवपीयवः पणयोऽसुम्नाऽन्येभ्यो ददति, त इतोऽपयन्तु लोको यमो द्युभिरहोभिरक्तुभिरस्य सुतावतो जनस्य सम्बन्धिनेऽस्मै व्यक्तमवसानं ददातु ॥१ ॥
भावार्थभाषाः - य आप्तान् विदुषो द्विषन्ति, ते सद्यो दुःखमाप्नुवन्ति। ये जीवाः शरीरं त्यक्त्वा गच्छन्ति तेभ्यो यथायोग्यमवकाशं दत्त्वा परमेश्वरस्तेषां कर्मानुसारेण सुखदुःखानि ददति ॥१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक आप्त, सत्यवादी, धर्मात्मा, विद्वानांचा द्वेष करतात. ते लवकरच दुःखी होतात. जे जीव शरीर सोडून जातात. त्यांना परमेश्वर त्यााच्या कमानुसार सुख दुःखाचे यथायोग्य फळ देतो.